Monday, 28 January 2019
Sunday, 27 January 2019
~ व्यास घाटी से आया मेरा दोस्त ~
वो वाइल्ड लाइफ से जुड़ा हुआ छात्र है, मैं सिर्फ उसे फेसबुक के माध्यम से जानता हूं, वैसे तो वो देहरादून का है लेकिन उसका मूल गांव मुनस्यारी में ही है। एक बार वह व्यास घाटी में रिसर्च के सिलसिले में आता है, महीनों घाटियों में रिसर्च के बाद बरम गाँव अपने रिश्तेदारों के यहाँ पहुंचता है, फिर मुझे बरम से मुनस्यारी पहुंचने के लिए गाड़ी के बारे में पूछता है, मुझ जैसे को जो खुद पहाड़ का नहीं है, उसे एक देहरादून का लड़का जो मूल रूप से मुनस्यारी का ही है, उसे बरम से मुनस्यारी का रास्ता तक नहीं पता होता। बात यहाँ खत्म नहीं होती।
वह बताता है कि मुनस्यारी के सुरींग गांव में उसके रिश्तेदार का घर है, रिश्तेदारों का घर होने के बावजूद, मुझसे उतनी जान पहचान न होने के बावजूद (सिवाय फेसबुक), शाम को भीगते हुए आता है और मेरे पास आकर रूकता है,
कहता है कि सुबह से बस एक पैकेट बिस्कुट खाया है,
जबकि उसके पास एक चालीस हजार का कैमरा है, बैकपैक है,
मैं उसे नास्ता कराता हूं, खाना खिलाता हूं,
फिर कमरे में बैठकर बातें होती हैं,
वो व्यास घाटी की एक से बढ़कर एक दंत कथाएँ सुनाता है,
दुःख और संताप से जुड़ी तमाम तरह की बातें करता है,
फिर मैं उससे घर परिवार के बारे में पूछता हूं,
तो अगला एक भी बात का ढंग से जवाब नहीं देता,
आंख में आंख डालकर बात भी नहीं करता,
तब जाकर मैं उस लड़के के लिए राय बनाने लगता हूं कि ये लड़का झोल है, जटिलता से भरे ज्ञान का चोगा पहना हुआ है।
मेरी कुछ मिनट की अनुपस्थिति में वो मेरे से बिना पूछे कमरे में रखा पूरा बुरांश का जूस गटकता है, असल में बुरांश का एक बोतल रूह आफजा की तरह होता है, यानि एक बोतल से एक बाल्टी जूस तैयार हो जाता है। क्या पता उस बंदे ने कैसे उस गाढ़े जूस को ही गटक लिया होगा।
फिर आखिरकार मुझे विवश होकर उसे अलविदा करना पड़ता है, और वो हीरो अंत में जाते जाते मुझे भेंट स्वरूप कुछ एक हिमालय की जड़ी दे जाता है जो वह व्यास घाटी से लेकर आया था, इसे भेंट न कहकर ऐसा कह सकते हैं कि वह उस जड़ी बूटी को मेरे कमरे में छोड़कर जाता है, ताकि फिर से आ सके। और सचमुच वो एक दिन तेज बारिश में फिर से टपक जाता है यह कहकर कि वो जड़ी आधा दे दो, एक दोस्त को देना है। मैं उस जड़ी को उसे पूरा लौटा देता हूं और फिर वह मुझसे दुबारा कभी नहीं मिलता, कभी नहीं, पता है क्यों?,, क्योंकि मैं हमेशा की तरह ऐसे नटवर लोगों के लिए ब्लाॅक का आॅप्शन चुन लेता हूं।
ट्रेवलिंग करने का ये एक फायदा है, पिचहत्तर टाइप के बागड़बिल्ले मिलते रहते हैं।
कहता है कि सुबह से बस एक पैकेट बिस्कुट खाया है,
जबकि उसके पास एक चालीस हजार का कैमरा है, बैकपैक है,
मैं उसे नास्ता कराता हूं, खाना खिलाता हूं,
फिर कमरे में बैठकर बातें होती हैं,
वो व्यास घाटी की एक से बढ़कर एक दंत कथाएँ सुनाता है,
दुःख और संताप से जुड़ी तमाम तरह की बातें करता है,
फिर मैं उससे घर परिवार के बारे में पूछता हूं,
तो अगला एक भी बात का ढंग से जवाब नहीं देता,
आंख में आंख डालकर बात भी नहीं करता,
तब जाकर मैं उस लड़के के लिए राय बनाने लगता हूं कि ये लड़का झोल है, जटिलता से भरे ज्ञान का चोगा पहना हुआ है।
मेरी कुछ मिनट की अनुपस्थिति में वो मेरे से बिना पूछे कमरे में रखा पूरा बुरांश का जूस गटकता है, असल में बुरांश का एक बोतल रूह आफजा की तरह होता है, यानि एक बोतल से एक बाल्टी जूस तैयार हो जाता है। क्या पता उस बंदे ने कैसे उस गाढ़े जूस को ही गटक लिया होगा।
फिर आखिरकार मुझे विवश होकर उसे अलविदा करना पड़ता है, और वो हीरो अंत में जाते जाते मुझे भेंट स्वरूप कुछ एक हिमालय की जड़ी दे जाता है जो वह व्यास घाटी से लेकर आया था, इसे भेंट न कहकर ऐसा कह सकते हैं कि वह उस जड़ी बूटी को मेरे कमरे में छोड़कर जाता है, ताकि फिर से आ सके। और सचमुच वो एक दिन तेज बारिश में फिर से टपक जाता है यह कहकर कि वो जड़ी आधा दे दो, एक दोस्त को देना है। मैं उस जड़ी को उसे पूरा लौटा देता हूं और फिर वह मुझसे दुबारा कभी नहीं मिलता, कभी नहीं, पता है क्यों?,, क्योंकि मैं हमेशा की तरह ऐसे नटवर लोगों के लिए ब्लाॅक का आॅप्शन चुन लेता हूं।
ट्रेवलिंग करने का ये एक फायदा है, पिचहत्तर टाइप के बागड़बिल्ले मिलते रहते हैं।
फोटो - ये तस्वीरें व्यास घाटी की है, जो मैंने उससे स्मृति चिन्ह के रूप में ले ली थी।
Monday, 14 January 2019
Khaliya Top, Munsyari, Uttarakhand
Khaliya top is an easy 10km trek from the balati band area, Munsiyari. It offers a magnificent view in summers of great Himalayan ranges. The five famous peaks namely Panchachuli, Hardeol, Rajrambha, Nandakot and Nandadevi are clearly visible from here and this makes it an amazing experience for even a first time trekker. The Khaliya top is at an astonishing altitude of 3500 metres above sea level.
It's one of those places you need to experience to understand what power nature holds. Experience in simple words would mean, staying on the top for atleast a day or two. It is a trek that most people chose to start in the morning and return by the evening, which in itself is very rewarding none the less, but to truly feel the place and the giants that surround you, the mighty peaks, you must stay. Two ways to do it would be either stay at the guest house alpine resort which is at the half way mark to the top or better you can keep a tent and stay at the top meadow area of khaliya bugyal. Well Overall It's a spectacular experience and the trek isn't very technical.
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