Wednesday, 11 July 2018

~ बुरे फंसे इन पहाड़ों में ~

                        अभी 15 दिन पहले कोलकाता से 9 लोगों का एक परिवार(बच्चों के साथ) मुनस्यारी घूमने आया हुआ था। जब वे मुनस्यारी‌ से वापस कोलकाता के लिए लौट रहे थे तो उसी वक्त टैक्सी वालों की हड़ताल हो गई। मुनस्यारी‌ से हल्द्वानी रेल्वे स्टेशन तक जाने के लिए उन्होंने पहले ही दो दिन सुरक्षित रख लिए थे और किस्मत देखिए कि टैक्सी वालों की हड़ताल भी उसी दो दिन के दरम्यान हुई। अब हुआ ये कि पहला दिन तो उन्हें मुनस्यारी में ही रूकना पड़ गया, अब जो दूसरा दिन था, जिस दिन रात को हल्द्वानी से कोलकाता के लिए उनकी ट्रेन थी, उस दिन टैक्सी वालों का हड़ताल भी जारी था तो वे सुबह से मुनस्यारी से अपनी बुकिंग गाड़ी में निकल‌ गये। जैसे ही वे थल पहुंचे, टैक्सी यूनियन वालों ने गाड़ी रोक ली‌। वे तो अपने हड़ताल को सफल बनाने में लगे रहे, उन्होंने पूरे परिवार को गाड़ी से उतरने को कहा। अब यहाँ मामला ऐसा फंसा कि वे उस बुकिंग वाली ट्रेवल कंपनी की गाड़ी में नहीं जा सकते। थल से उन्होंने बारह हजार रूपये देकर दो अलग अलग कार करवाई, और हल्द्वानी की ओर निकल पड़े। इन दो कारों को फिर से बेरीनाग में रोका गया। कुछ इस तरह वे रात तक हल्द्वानी रेल्वे स्टेशन पहुंचे और जैसे ही वे स्टेशन पहुंचे, ठीक 10 मिनट पहले उनकी ट्रेन निकल‌ चुकी थी। अब पहले जो बारह हजार अतिरिक्त लगे वो अलग, अब यहाँ 9 लोगों का रिजर्वेशन का लगभग दस हजार पार समझिए, वो भी गया, अब हल्द्वानी से उन्होंने टीटीई को कुछ पैसे दिए और जैसे तैसे बाघ एक्सप्रेस में लखनू तक पहुंच गये, अब इसके भी कितने जो पैसे लगे होंगे, इसकी मुझे उतनी जानकारी नहीं है। बाकी इस बीच उन्हें और साथ बच्चों को परेशानी हुई होगी, ये शायद आप और हम ना समझ पाएं‌। अब लखनऊ से घर कोलकाता जाने के लिए उन्होंने फ्लाइट किया। अब 9 लोगों का फ्लाइट का खर्च मान लीजिए कम नहीं ज्यादा 45 हजार पार। कुछ इस तरह वे मुनस्यारी में सुकून‌ से दो दिन गुजारने के बाद बेमन से कोलकाता पहुंचे और फिर अगले दिन उन्होंने मुझे ये सब बताया। उन्होंने कहा कि यार अखिलेश चलो मैं तो ठीकठाक नौकरी में हूं तो ये सब मैनेज कर लिया, एक आम आदमी जिसके पास पैसे कम हों वो तो बुरे तरीके से पिस जाएगा।
मुझे भी समझ नहीं आया कि इस स्थिति के लिए आखिर किस को कोसा जाए, कहां किसको जिम्मेदारी थोपी जाए।

                            आप सोच रहे होंगे कि आज इतने दिनों बाद मैं ये सब क्यों लिख रहा हूं। असल में आज मेरी भी स्थिति कोलकाता के उस भाई साहब की तरह हो गई है, बस फर्क ये है कि वे 9 लोग थे, बच्चों के साथ पूरा परिवार था, और मैं अकेला हूं। उनको कैसे भी करके कोलकाता पहुंच के अगले दिन आॅफिस जाना था, मुझे कैसे भी करके अर्जेंट घर पहुंचना है, उनकी परेशानी का कारण टैक्सी हड़ताल था, इसलिए वे चाहें तो टैक्सी यूनियन और व्यवस्था को कोस सकते हैं, लेकिन यहाँ मेरी परेशानी का कारण जमकर हो रही बारिश और उसकी वजह से रोड ब्लाॅक का होना है, अब मैं न तो किसी को कोस सकता हूं, न ही नाराज हो सकता हूं‌, मैं सिर्फ और सिर्फ मौसम ठीक होने का इंतजार कर सकता हूं‌।

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