अनिरुद्ध - कैसी हो तुम?
शालिनी - ठीक हूं आप कैसे हो?
अनिरुद्ध - मैं भी बढ़िया।
शालिनी - एक बात बोलनी थी, बोल लूं?
अनिरुद्ध - हां।
शालिनी - आप थोड़ी कुछ दुआ कर दो प्लीज! मेरे लिए।
अनिरुद्ध - ठीक है लेकिन किसलिए।
शालिनी - बस कर दो मेरे अच्छे के लिए, ऐसा सोचकर।
अनिरुद्ध - अच्छा जी। कर दूंगा। पर मैं ही क्यों?
शालिनी - देखो दुनिया में दो ही चीजें होती हैं एक सही और दूसरा गलत। मैं सही हूं, सही की जरूरत महसूस हुई है और मुझे आप सही लगते हैं इसलिए कह रही हूं। आप कर दोगे ना?
अनिरुद्ध - हां जी पक्का। अच्छा मिंजो एक बात बतानी थी।
शालिनी - बताओ।
अनिरुद्ध - मुझे तुम्हारे गाँव का सपना आया था, मम्मी और बड़का जी साथ थे, चौमास लगा हुआ था, मौसम काफी बिगड़ रखा था, हम शायद पूजा के लिए तुम्हारे गाँव जा रहे थे। मैंने जाने को मना किया तो बड़का जी ने जिद करके मुझे अपने साथ ले लिया।
शालिनी - चल झूठ्ठे। आपको जरूर किसी ने बताया होगा हमारे गाँव के पूजा के बारे में, अभी सप्ताह भर पहले हुई थी पूजा।
अनिरुद्ध - सच कहता हूं, सपने में आया गाँव। मुझे क्या मस्ती चढ़ी है कि तुम्हारी मम्मी के साथ पहाड़ चढूं। हद है।
शालिनी - हां तो अच्छी बात है। अगली बार यहां आओ तो मम्मी जी के साथ चले ही जाना गाँव। रास्ते भर भूत और देवी-देवताओं की पूजा की कहानियां सुनाएंगी। हेहे।
अनिरुद्ध - अच्छा ये बताओ इस बार रोहड़ू के मेले में जाना हो रहा कि नहीं?
शालिनी - मैं नहीं जाऊंगी इस बार। पिछली बार बहुत भीड़ हो रखी थी। मुझे ठीक नहीं लगता अब जाना।
अनिरुद्ध - मैं जाने की सोच रहा था। कुछ यहां दिल्ली के दोस्त भी जाने का मन बना रहे थे उन्होंने कभी देखा नहीं है वहां का मेला, शायद उन्हीं के साथ आऊंगा।
शालिनी - तो घर नहीं आओगे?
अनिरुद्ध - पता नहीं।
शालिनी - मुझे मिलना था।
अनिरुद्ध - क्यों?
शालिनी - बस एक बार मिलना है। बहुत कुछ बातें बतानी है। जो इतने लंबे समय से छुपी हुई हैं।
अनिरुद्ध - जो शालिनी पिछले छ: महीनों से मेरा फोन तक नहीं उठाती थी उसे अब मुझसे क्यों मिलना है।
शालिनी - उस समय चीजें अलग थी। अभी हालात बदल गये हैं। मिलकर ही सब बता पाउंगी। अभी ऐसे फोन पर कहूंगी तो आप संभाल नहीं पाएंगे। इसलिए खुद को रोकती हूं।
अनिरुद्ध - पर ऐसा क्या है बोल भी दो। कुछ तो बताओ।
शालिनी - अभी नहीं। आप रोहड़ू के मेले से रिकांग पियो लौट आना न। फिर बताऊंगी।
अनिरुद्ध - ठीक है मैं देखता हूं, कोशिश करूंगा कि इस बार ज्यादा छुट्टियां मिल जाए।
शालिनी - तो, आप आ रहे हैं।
अनिरुद्ध - हां, मैं आ रहा हूं।
शालिनी - मिलेंगे, मिलेंगे।
अनिरुद्ध - मिलेंगे, मिलेंगे।
.
.
.
.
.
To be continued..