Friday, 16 September 2016
Tuesday, 13 September 2016
पंचाचूली - एक अद्भुत रहस्य
जब मैं तुमसे दूर था तुमने खूब अहसास कराया कि तुम कौन हो।
मैंने तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढा..कश्मीर से लेकर हिमाचल..कैलाश पर्वत हो या जंस्कार..पर तुम वहां नहीं थे।
मुझे क्या पता था कि तुम कुमाऊं और नेपाल हिमालय के मध्य रहते हो।
याद है पिछली बार जब मैं तुमसे मिलने आया था तुमने मुझे कितना कुछ दिया था।
जब मैं तुम्हें छोड़कर वापस जा रहा था तुमने मुझे खूब रूलाया...मेरे आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे।
उन आंसुओं में न तो खुशी थी न ही कोई गम था।
हां अगर कुछ था तो मैं उसे एक आनंद का नाम दे सकता हूं एक ऐसा आनंद जो सिर्फ और सिर्फ तुम ही मुझे दे सकते हो,इसलिए तो मैं तुम्हारे पास खींचा चला आता हूं।
याद है जब मैं तुमसे दूर जा रहा था, तुमने उस वक्त मेरे बचपन से लेकर आज को मेरी आंखों के सामने चित्रित कर दिया,सब कुछ कितनी तेजी से हो रहा था..ऐसा लगा कि अब मेरा सर फटने को है, ये देह अब मुझसे अलग होने को व्याकुल हो रहा है।
तुमने मुझे मेरे अस्तित्व के पास लाने की भी कोशिश की, लेकिन शायद मैं उस काबिल नहीं था।
मैं तो तुमसे थोड़ा ही पाकर रोने लगा।
मुझे आज भी यकीन नहीं होता कि मैं उस वक्त रूक रूककर दो तीन घंटे रोया था।गाड़ी चल रही थी और बाजू में बैठे लोग भी थोड़े घबराए कि मैं आखिर इतने लंबे समय तक गाड़ी में बैठे बैठे रो क्यों रो रहा हूं।मेरा चेहरा भीग चुका था मेरे शर्ट की बाहें भी आंसू पोछने के कारण गीली हो गई थी।
कुछ देर बाद चेहरा सूखता बांहें भी सूखती फिर थोड़ी देर बाद यही होता..आंसू फिर बहने लगते.कितना कुछ दिखाया था तुमने मुझे..मैं आजतक जितने भी लोगों से मिला हूं बचपन से लेकर आज,और अतीत में जितनी भी परिघटनाएं मेरे साथ हुई है वो सब मस्तिष्क में धूमकेतु की भांति घूमने लगे।
धीरे-धीरे सब साफ साफ दिखाई देने लगता, फिर सांसे तेज होने लगती, मेरी सुधी जैसे किसी ने छीन ली हो, ऐसा लगता कि बस अब मेरे प्राण चले जायेंगे।
फिर जोर से मैं छुप छुपाके गाड़ी कि किनारे की सीट पर बैठा रोने लगता।
शायद मैं आंसुओं के रूप में किसी नदी की जलधारा की भांति तेजी से बह रहा था..लोग चकित हुए लेकिन किसी ने मेरे बीच रास्ते आकर पूछ परख नहीं की, शायद उन्होंने मेरे इस मौन को सर्वसम्मति से स्वीकारा।
पता है तुमने मुझमें ऐसा साहस भर दिया कि आज मैं अपने समकक्षों को इस एक बात की चुनौती दे सकता हूं कि चलिए मुझसे ज्यादा अपने अतीत की स्मरणशक्ति कोई रखता हो तो सामने आये और मुझसे बड़ी लकीर खींचकर दिखाये।
मगर तुम तो जानते हो मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा, मैं तुम्हारी महिमा का यथोचित पालन करूंगा।
तुम इतने विशालकाय हो श्रृंखलाबध्द हो रहस्यमयी हो लेकिन मैं तुम्हारे इस जिद का अनुयायी हूं कि तुम्हें आजतक किसी ने नहीं पाया।
मुझे पता है न तुम किसी के हुए न ही किसी के होगे, न ही तुम किसी की समझ में आओगे।
लोग तुम्हें एक पहेली समझकर तुम्हारे पास आयेंगे और दफन होते जायेंगे बर्फ की मोटी चादरों के बीच।
पुराणों के अनुसार ये कहा जाता है कि पांडवों ने कौरवों से पराजय के पश्चात यहां हिमालय के इन पांच पर्वत चोटियों में शरण ली उस एक वजह तुम्हें पंचाचूली कहा जाने लगा।
वैज्ञानिक तुम्हारे पास आते हैं तुम्हें जानने के लिए लेकिन एक निश्चित दूरी तक ही जा पाते हैं और बर्फ में दब जाते हैं और सालों तक सुरक्षित रहते हैं।
लोग कहते हैं कि तुम्हारी चमक सबसे तेज है, तुम्हें पास से देखने के एवज में पता नहीं कितने लोगों ने अपने आंखों की रोशनी गंवा दी है।
दो साल पहले आईटीबीपी के कुछ सैनिक तुम्हारी चढ़ाई करने आए वो भी बर्फ में जमींदोंज हो गये एक भी नहीं बचा।
आज तक जितने भी लोग दफन हुए हैं सालों तक मशक्कत करने के बाद भी किसी की लाश नहीं मिल पाई है।
सबसे बड़ा रहस्य तो इस बात का भी है कि हेलीकाप्टर भी आजतक तुम्हारे ऊपर से होकर नहीं गुजरा..वो बस किनारे से एक दूरी बनाते हुए जाता है और वापस लौट आता है।
पता है वैज्ञानिक तुम्हारे इस रहस्य को विद्युत चुंबकीय क्षेत्र का नाम देते हैं।
लोग माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई करते हैं अंटार्कटिक के विन्सन मैसिफ की भी चढ़ाई करते हैं कुछ इस तरह आल्पस,यूराल,एंडीज और संसार की तमाम ऊंची चोटियों में जाते हैं और फिर जब पता चलता है कि आज तक किसी ने तुम्हारी आधी चढ़ाई भी नहीं की तो वे बड़ी उत्सुकता लिए तुम्हारे पास आते हैं।
हे देव!
इन सभी को माफ कर देना..तुम्हारे इस तीन हजार मीटर की उंचाई को ये लोग मजाक समझकर चढ़ने आ जाते हैं कोई शराब की बोतलें पकड़कर तुम्हारे आस पास आता है तो कोई ढेर सारी मशीनें लेकर आता है ताकि तुम्हारी पड़ताल कर सके।
लेकिन अब लोग तुम्हें समझने लगे हैं अब कोई तुम्हारे पास नहीं आता लेकिन उनकी समझ बस इतनी है कि तुम बड़े दुर्गम हो,खतरनाक हो, इस एक वजह से लोगों ने तुमसे दूरी बना ली।
लेकिन मैं तुमसे सच्चे मन से कहता हूं कि मुझे अपने एक अंगरक्षक के रूप में ही स्वीकार करना..मैं तुम्हारे शौर्य से खूब परिचित हूं तुम जैसे हो वैसे ही बड़े कृपालु हो,पूजनीय हो।
मैं इस इरादे से नहीं आया कि तुम्हारी चढ़ाई करूं और अपने नाम फतह हासिल कर लूं।
हां मैं तुम्हारे पास आकर फिर से वो अहसास पाना चाहता हूं जो पिछले बार तुमने मुझे आंसुओं के रूप में दिया।
मैं तो एक सरल और सहज मन लिए तुम्हारे पास आता हूं बस तुम्हें महसूस करने के लिए।
न मैं वैरागी होना चाहता हूं न ही मुझे किसी बात की लालसा है जिसके लिए मैं तुमसे प्रार्थना करूं।
तुम एक बार मेरे सपने में फिर से क्यों नहीं आ जाते..याद है न मैं सपने में तुम्हारी गोद में रहता हूं एक बच्चे की तरह दुलार पाता हूं।
अब आखिर में बस इतना कहुंगा कि तुम्हारे दरवाजे तक आ गया हूं बस एक बार मेरे लिए अपने दरवाजे खोल देना मैं बस तुम्हारे देवत्व को पाकर वापस लौट जाऊंगा।
Sunday, 4 September 2016
~ नशामुक्ति से भी बढ़कर ~
दोस्त ने फोन करके कहा और आज क्या प्लानिंग है
मेरा हमेशा की तरह वही जवाब क्या प्लानिंग यार सबका बर्थडे विश समेट के खुश रहो,बस।
दोस्त ने कहा- अबे बर्थ डे के दिन कोई इतना उदासीन होता है क्या।
मैंने कहा- उदासीन क्या,कोई होना भी तो चाहिए..रोजगार के चक्कर में हम सब दोस्त यार आज हजार हजार किलोमीटर दूर हो गये हैं ये भी तो देख।
दोस्त ने हंसते हुए कहा- भाई तू न फेसबुक में ही सेलिब्रेट कर।
मैं सोचा- हां तू सही बोल रहा है अमल किया जाये इसपे।
फिर उसने कहा- फेसबुक में कुछ लिख दे अच्छा।
मैंने उसे ठीक है कहा ही होगा उसके मिनट भर बाद ही मुझे अनिकेत(काल्पनिक नाम) याद आ गया।
अनिकेत इसलिए मुझे याद आ रहा है क्योंकि न ही वो फेसबुक या किसी सोशल साइट में है न ही मेरे पास उसका नंबर है।
पता नहीं कहां किस हालत में है।
आज वो इसलिए भी याद आ रहा है क्योंकि वो कभी केक नहीं खाता था।
एक बार उसका बर्थडे था..हम लोगों ने बड़े मन से उसके लिए केक लाया था रात के बारह बजे उसे बड़ा मनाया बुझाया फिर भी वो राजी न हुआ।
कहने लगा- चेहरा बाल जहां लगाना है लगा लो यार लेकिन मैं केक नहीं खा पाऊंगा। सारी, ये केक पूरा तुम लोग खाओगे ठीक है।
हम लोग मान गए लेकिन साथ में जो लड़के थे वे चिढ़चिढ़ा गये और अनिकेत के जाने के बाद कहने लगे- लड़की के चक्कर में केक नहीं खा रहा है साला हम दोस्त लोग छोटे हो गये आज है ना।
मैं चुप था।
क्या बोलता।
एक तरफ इनका गुस्सा भी जायज था..दूसरी तरफ अनिकेत के दृढ़ निश्चय से भी मैं उलझ नहीं सकता था।
अनिकेत के लिए कितना कुछ बदल गया था..वो प्यार में पड़ा तो भी एक जैन लड़की के साथ।
शुरुआती दिनों में जब उसके प्रेम का पारावार सातवें आसमान पर था..
वो मुझे बताता कि कैसे उसने कनुष्का(काल्पनिक नाम) की बात मानते हुए आलू,प्याज खाना छोड़ दिया।
आलू की जगह चुकंदर ने ले ली, प्याज को पत्तागोभी ने विस्थापित कर दिया।
अब बेकरी का एक भी आयटम वो छूता न था, तेल से तली हुई चीजें भी ना के बराबर खाता था, चाकलेट से भी परहेज कर लिया था।
कनुष्का ने मानो उसकी पूरी खाद्य श्रृंखला बदल दी..धीरे से ही सही वो उसका खूब रूपांतरण करने लगी थी।
अनिकेत जब नाराज होता तो कनुष्का कहती - ओये! मेरे प्यार का कोई निरपेक्ष मान अगर है तो तुम्हें मेरी बात माननी पड़ेगी..अगर इतना नहीं कर पाओगे तो बता दो,नहीं बोलूंगी कुछ आज के बाद। तुम्हें मेरे पीछे जो करना है कर लेना लेकिन याद रखना तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूं।
अनिकेत उसकी बात टालता भी तो कैसे..कनुष्का की जिद भी तो बाकी लड़कियों जैसी न थी।
कभी-कभी हंसता और मुझसे कहता कि ये चौबीस कैरेट सोने जैसी लड़की मेरी ही जिंदगी में क्यों आई।पता नहीं ये मुझसे संभलेगी कि नहीं।
अनिकेत चाह कह कर भी कनुष्का की बात टाल नहीं पाता था, वो कनुष्का के प्रेमादर्श से बार-बार हारता।
महीनों तक जैनियों की भांति खान-पान अपना कर अनिकेत का चेहरा चमककर चांद हो गया था।
एक समय ऐसा आया जब अनिकेत ने मुझे भी सलाह दी कि एक बार आजमा के देख..मैं कुछ ही दिन में सरेंडर कर गया..
मैंने अनिकेत से साफ कह दिया- प्रेम तेरा, ये निधि फिलहाल तू ही संभाल ये अभी इस उम्र में मुझसे न होगा।
मैंने अनिकेत को ऐसा कह तो दिया लेकिन आज जब वो दिन याद कर रहा हूं तो समझ आ रहा है कि जैनियों के फूड हैबिट का कोई सानी नहीं।अगर निरोग रहना हो तो इससे बेहतर और कुछ भी नहीं।
कुछ साल बाद ऐसा हुआ कि कनुष्का की शादी हो गयी, तय सीमित समय में अनिकेत कुछ कर न पाया।
जब भी वो मिलता तो मैं उससे पूछता - क्या अभी भी आलू-प्याज, चाकलेट वगैरह का त्याग चल रहा है?
जवाब में वो हंस के कहता- अब तो यही सहारा है, यही नशा है यही प्रेम भी है।
Friday, 2 September 2016
~ एक जोड़ी पायल ~
जब भी मैं घर से निकलता..
वो अपने दरवाजे पर आकर खड़े हो जाती..
मुझे देखकर आंखें मींचते हुए मुस्कुराती..
मैं भी वही करता..
ये सिलसिला लगभग रोज होता..
बहुत दिनों बाद जब मैं कहीं से घर को लौटता तो वो मेरे हिस्से की मुस्कुराहट बचा कर रखती.मिनटों तक मुझे ताकती..उसका सम्मान करते हुए मैं भी उसे देखता रहता।
उसके स्नेह ने मुझे पराभूत कर दिया था।
मुझे कभी-कभी उसके साहस से डर लगता,
उसे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं रहती कि थोड़े दूर बैठे उसके दादाजी का ध्यान हम दोनों पर है।
मैं इस डर से कभी कभी अपनी नजरें झुकाकर बिना आंखमिचोली किए निकल जाता।
वो भी धीरे से अपने दोनों हाथों को लोहे की ग्रिल से हटाती और वापस घर के अंदर चली जाती।
एक बार को मैंने सोचा कि पास जाकर थोड़ी बात कर ली जाए लेकिन घबराहट भी होती कि एक तो ये अनजान शहर, जान न पहचान, कहीं किसी ने देख लिया तो पता नहीं क्या सोचेगा।
आज वो सज धज के लोहे की ग्रिल के पास आयी,और मुझे अपना श्रृंगार दिखाने लगी,इतराने लगी।
आज शायद उसका जन्मदिन है उसने अपने कानों में नई बालियां पहनी हैं,रंग-बिरंगा टीका लगाया है, नये कपड़े भी पहने हैं।
लेकिन मेरी निगाह रूकी भी तो उसके पैरों पर..वहां बैचेनी थी..सूनापन था।
इतना श्रृंगार देखने के बाद भी उसके पैरों में पायल का ना होना मायूस कर गया।
दूसरी तरफ आज उसका स्वाभिमान इतना प्रस्फुटित हुआ कि उसने मुझे देखकर मुस्कुराना तक जरूरी नहीं समझा।
भला कोई इतना इतराता है क्या, एक तो पायल की झंकार भी नहीं है।
मैंने तो गांठ बांध ली कि अब न मुस्कुराऊंगा।
मैं चेहरा फेरने ही वाला था कि उसने हाथ हिलाया और मुझे हाय किया। एक पल को समझ नहीं आया कि ये क्या हुआ.फिर मैंने भी हाय कर दिया..
अब वो ध्वनि की गति से आंखें मीचने लगी,
मैं भी आकाशगंगा की भांति मुस्कान बिखेरने लगा।
दोनों खूब सारा मुस्कुराये..।
इतने में उसके पापा ने हम दोनों को देख लिया।
वो आये और उसे अपनी गोद में उठाकर ले गये।
आज वो मेरी आंखमिचोली करने वाली गुड़िया दो साल की हो गई है।