सोशल मीडिया में अपने छोटे मोटे सुख-दुख को बांटते हुए हम आम भारतीयों में से लगभग हर किसी को इस फ्रिज के बारे में पता होगा। यह डिब्बेनुमा फ्रिज जो लगभग हर छोटे बड़े परचून/किराने की दुकान में देखने मिल जाता है, इसमें बहुत से अलग-अलग ब्रांड के चॉकलेट रखे जाते हैं, अमूमन 5 रुपए से लेकर 100 रुपए तक के चॉकलेट रहते हैं, इन सारे चॉकलेट्स के विज्ञापन बड़े-बड़े सेलिब्रिटी दशकों से करते आ रहे हैं। इस कारण से इन चॉकलेट्स की बड़ी खेप भारत के आम लोगों तक पहुँचती है, हममें से लगभग हर किसी ने खाया ही होगा। दोस्त यार को तोहफ़े में भी हम दशकों से यही सब देते आ रहे हैं। “ कुछ मीठा हो जाए “ की तर्ज़ पर अमिताभ बच्चन जैसे सेलिब्रिटियों ने एक तरह से चॉकलेट को मीठे का पर्याय बना दिया जबकि चॉकलेट उस तरह से मीठे और सुगर वाली श्रेणी में नहीं आता है।
अब मुद्दे की बात यह है कि ये सारे चॉकलेट निहायती कूड़ा हैं, जिससे शरीर को कुछ भी नहीं मिलता है। निःसंदेह इनके बनने में एकदम घटिया स्तर के कोको और नाना प्रकार के आर्टिफीसियल फ्लेवर का इस्तेमाल किया जाता है, तभी इनमें चॉकलेट के नाम पर केवल एक ख़ास तरह का स्वाद होता है। यही फार्मूला सेलिब्रिटी द्वारा प्रचारित किए जा रहे बहुत से दैनिक जीवन के उत्पादों पर लगाया जा सकता है।
चॉकलेट की असली पहचान क्या है, उसका एहसास क्या होता है, इसे समझने के लिए सन् 2000 में बनी चॉकलेट फ़िल्म को देखना चाहिए। फ़िल्म में एक महिला और उसकी बेटी फ्रांस में एक रूढ़िवादी गाँव में चॉकलेट की दुकान खोलती हैं, जिसे वहाँ के ग्रामीण स्वीकार नहीं करते हैं। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ वे लोगों का दिल जीतती हैं और उनकी परेशानियों में उनकी आर्थिक मदद भी करती हैं। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ वे अपने घर में हाथ से बनाए चॉकलेट के दम पर करती हैं। जो कोई भी विरोध करते वे सबको मुफ्त में चॉकलेट खिलाया करती हैं, चॉकलेट खाकर ही वे उनके प्रशंसक बन जाते हैं। किसी की तबीयत ठीक नहीं है उसे भी एक ख़ास तरह का चॉकलेट दे देती है जो तुरंत उनकी तबीयत ठीक कर देता है। यह सब कुछ उनके बनाये चॉकलेट के दम पर होता है।
कुछ समय पहले विदेशी ब्रांड की चॉकलेट लगातार खाने के बाद समझ आया की असल मायनों में चॉकलेट होता क्या है। चॉकलेट कम अधिक इनो की तरह होता है, वही 6 सेकंड में काम करने वाला इनो जिसे भारत का समाज एसिडिटी भगाने के लिए कम और इडली बनाने के लिए अधिक इस्तेमाल करता है। असल में चॉकलेट खाते ही आपका मूड बहुत बढ़िया हो जाता है, मिनट भर के अंदर ही एक हल्कापन महसूस होता है क्यूंकि अच्छा चॉकलेट तुरंत अच्छी मात्रा में सेरोटोनिन और एंडोर्फिन स्रावित करता है। लेकिन ख़राब और घटिया क्वालिटी के कोको से बने चॉकलेट में सिर्फ़ आर्टिफीसियल फ्लेवर ही मिलता है जिससे आपको केवल घंटा मिलता है।