Friday, 14 April 2023

प्रेरणास्त्रोत बनाम इन्फ्लुएंसर्स

पिछले एक दो दशक में जो एक बड़ा बदलाव हमारे सामने है वह हमारे प्रेरणास्त्रोतों को लेकर है। देखने में आता है कि चाहे वह कला, साहित्य, शिक्षा, किसानी, तकनीकी या अन्य कोई भी क्षेत्र हों, चाहे प्रवचन सुनाने वाला कोई बाबा ही क्यों न हो, इन सभी क्षेत्रों में मौद्रिक रूप से जो मजबूत है, वही आज के समय में सबसे बड़ा प्रेरणास्त्रोत है। हर तरह के विषय विशेषज्ञों, इन सबकी तौल का एक ही आधार है और वह है मुद्रा। हम इस हद तक खोखले और गरीब हो चुके हैं। एक चाय बेचने वाले से लेकर खेत में कुछ प्रयोग कर साल भर में लाखों करोड़ों का मुनाफा कमाने वाला ही आज के समय का हीरो है। हाँ, इसमें हमें इस बात से कोई मतलब नहीं कि वह कैसे कमाता है, क्या तरीके अपनाता है, हमें सिर्फ और सिर्फ संख्याबल से मतलब है। कोई बहुत कम समय में येन केन प्रकारेण मौद्रिक ऊंचाई को हासिल कर ले तो हम गर्व से फूले नहीं समाते हैं। फास्ट फूड और वन टच सर्विस प्रोवाइडर की तर्ज में हमें सब कुछ एक झटके‌‌ में जो चाहिए होता है। 

यह प्रेरणास्त्रोतों का नहीं वरन् इन्फ्लुएंसर्स का युग है। तीस सेकेण्ड के वीडियो और चार लाइन वाक्य से ही वैश्विक ज्ञान परोस लेने की जिम्मेदारी का निर्वहन करने में हम सफल हुए हैं। सामान्यीकरण की समस्त ऊंचाईयाँ हमारी यह पीढ़ी छू लेने में अभी तक सफल रही है। मुद्रा के पीछे की इस भागादौड़ी, इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा ने शिक्षा के क्षेत्र को भी नहीं छोड़ा है। शिक्षकों में भी जो सबसे अधिक मुद्रा संचित करता है, जिसकी बड़ी फैन फालोइंग है, एक मजबूत संख्या बल है, वही पूजनीय है, सम्मानीय है। इसलिए विवश होकर एक शिक्षक को इस सच्चाई को स्वीकारना पड़ता है। अन्यथा जो इस राह पर नहीं चलता है, हम और हमारा समाज उन्हें हाशिए में ढकेल देते हैं। इन्फ्लुएंसर्स युग का यही नियम हर जगह लागू है, सर्वव्यापी है, बाकी सब व्यर्थ है।