Saturday, 3 November 2018

                   मेरा एक मुंहबोला छोटा भाई है, 12वीं पास है, अभी उसकी उम्र लगभग 20 साल की होगी। 12वीं पास करने के बाद वह काम के सिलसिले में शहर आया, सन् 2015 में उसे हमने रायपुर के एक मिठाई की एक दुकान में काम दिलवाया, 6000 रूपए प्रतिमाह फिक्स हुआ, साथ ही खाना पीना वहीं दुकान में ही, कारखाने में रहने की भी सुविधा थी, लेकिन‌ ज्यादा गुलामी की जकड़न महसूस न हो पाए इसलिए मैंने लगभग दो साल तक उसे अपने साथ रखा। साथ में उसी गांव का एक और 12वीं पास लड़का था,जो आंख के अस्पताल में काम करता था, यानि हम कुल तीन लोग थे। उन लोगों ने आगे बीए प्राइवेट का फार्म भरा, लेकिन दोनों बुरी तरीके से फेल हो गए‌। फिर मैंने उन्हें सख्त हिदायत दे दी कि मेरे से पूछे बिना आगे किसी भी प्रकार की पढ़ाई मत करना। अब पढ़ाई में उनकी कोई खास रूचि थी नहीं, तो पढ़ाई करने का क्या ही औचित्य।
इस बीच मेरे घरवाले, रिश्तेदार जब कभी मुझसे मिलने आते या फोन पर बात होती तो मुझे खूब कोसते कि कैसे लोगों के साथ रहता है, ये 12वीं पास मिठाई दुकान वाले वर्कर जैसे लोगों के साथ रहेगा तो तेरा बुध्दिभ्रष्ट हो जाएगा, अच्छे लोगों के साथ रहा कर, पढ़े-लिखे लोगों के साथ रहा कर, आदि आदि। मैं चुपचाप सुन लेता। ये वही 12वीं पास लड़के थे जो आज भी मेरे माता-पिता को पूरे हक‌ से मम्मी पापा कहकर बुलाते हैं।
खैर...

चूंकि मैं अधिकतर समय बाहर उत्तराखंड या कहीं और रहता। तो मैंने वह कमरा अपने उन दोनों छोटे भाईयों के भरोसे छोड़ दिया। साल भर पहले की बात होगी, मैं उत्तराखंड से वापस लौटा, मैं क्या देखता हूं कि वह कमरा जिसे मैंने उनके भरोसे छोड़ दिया था, उसे उन लोगों ने धर्मशाला बना दिया है, सब तरफ शराब की बोतलें, गूड़ाखु की डिबिया, चूना डब्बा, गुटखे का रैपर आदि बिखरा हुआ था। असल में उन्होंने इस बीच अपने गाँव से 3-4 और लोगों को बुला लिया था, और तो और इतने बड़े सयाने कि सबको छोटा मोटा काम दिला दिया था। ये तो चलो ठीक हुआ। लेकिन वे सारे लड़के पक्के नशेड़ी थे, आगे बढ़ने की जो लगन होनी चाहिए, वो तो उनमें बिल्कुल न थी। इन सब चीजों की वजह से मेरा सब्र का‌ बांध टूट चुका था, मैंने उन सबको दो दिन का समय दिया और कहा कि जाओ अपने लिए नया कमरा ढूंढ लो, नहीं तो मैं यहाँ से तुम सब का सामान बाहर फेंक‌ दूंगा।
मैंने अपने उस एक भाई को भी खूब डांट लगाई और समझाने की कोशिश करी कि तुम लोगों के कारण मैं घरवालों से ताने सुनता हूं, और तुम यहाँ 6000 की नौकरी करके अपने ये नशेड़ी दोस्तों के नाम‌ पर समाजसेवा मचा रहे हो, पहले खुद का फ्यूचर तो देख लिया करो।
लेकिन जड़बुध्दि थे, कहां समझते, कमरा भी नहीं ढूंढा ये सोचकर कि भैया हम लोग को ऐसे थोड़ी भगा देगा।
नवतप्पा का समय था, और मेरा पारा तो पहले ही चढ़ा हुआ था, मैंने एक दिन सुबह सुबह उन सबको वहाँ से भगा दिया और कहा कि जाओ आज के बाद कभी शक्ल मत दिखाना, लाइफ में कुछ नहीं कर सकते, कभी नहीं सुधर सकते। एक दो दिन तो बड़ा खराब लगा कि गुस्से में ये मैंने क्या कर दिया, इतनी गर्मी में कहां जाएंगे, कारखाने में रहेंगे, वहां तो कूलर तक नहीं है, यहां तो इस 40 पार गर्मी में कूलर तक काम नहीं करता है। इस बीच मैं खुद कुछ दिन बिना कूलर के रहा।
और फिर उनसे मेरा कभी संपर्क नहीं हुआ।

आज इतने लंबे समय बाद उस भाई से बात हुई तो पता चलता है कि उसने उन सभी नशेड़ी साथियों से दूरी बना ली है। और इस दौरान पैसे जमा करके पांच गाय खरीद ली है, एक गाय की कीमत तकरीबन 35000 और इतना दूध हो रहा है कि प्रतिमाह 40000 रूपए से ज्यादा कमाई हो जाती है। चूंकि खुद शहर में रहकर मिठाई दुकान में फिलहाल 10000-12000 रूपए प्रतिमाह कमा रहा है, तो गांव में गायों की देखरेख के लिए दो लोगों को 7000 रूपए प्रतिमाह में काम पर रखा हुआ है, कह रहा था 7000 रूपया ज्यादा है लेकिन अभी और कुछ बड़ा सोच रहा हूं इसलिए पैसे का नहीं देख रहा हूं, और सरकार से 5 रूपए प्रति लीटर वार्षिक बोनस यानि लगभग 50000 रूपया वहाँ से भी मिल जाएगा। बता रहा था कि अभी नवंबर के आखिरी सप्ताह में लखनऊ जाकर बकरीपालन का कोई ट्रेनिंग कोर्स करेगा और फिर जनवरी 2019 में 100 बकरियाँ खरीदने वाला है। और कह रहा था कि एक घोड़ा खरीदने का बड़ा मन है। मैंने हंसते हुए पूछा कि ये क्या है बे, लोग कार बाइक खरीदने का शौक रखते हैं और तू है कि घोड़ा पालना चाहता है‌। बोलता है बहुत मन है गांव में रहकर घोड़ा पालने का, अब इस मिठाई दुकान में कब तक सढ़ेंगे भैया, आखिर में गांव में ठाठ से रहना है। और फिर कहता है कि उस दिन जो नवतप्पे में आप हमको भगाये थे, पहले कुछ महीने तो बहुत खराब लगा कि कोई इतना बेकार आदमी कैसे हो सकता है कि अपनों को ही भगा दे।

फिर कहता है कि पहले एक दो महीने तो रहने खाने में ऐसा खर्च हुआ कि बहुत उधारी हो गया, ये नौबत आ गया था कि रायपुर छोड़ के भागने वाला था, फिर धीरे धीरे पूरा मैनेजमेंट समझ आ गया, खर्चा कम होने लगा। सच में आपके साथ रहते थे तो कोई फालतू खर्च नहीं होता था, तब लगा कि आप उस दिन अगर नहीं भगाए होते तो बढ़िया आराम से मिठाई दुकान में काम करते करते सढ़ जाता, आज ये इतना सब नहीं हो पाता‌।