Friday, 11 August 2017

- नीम का पेड़ -

                       हमारे घर में पूजा होनी थी। पंडित जी अपनी साइकल से बड़े सबेरे पहुंच चुके थे। बताता चलूं कि पंडित जी हमारे घर लगभग दस साल बाद आए हैं। जैसे ही वे घर पहुंचे उन्होंने कहा - यहाँ एक नीम का पेड़ था क्या?
हमने कहा - हाँ था, पर वो तो कब का उखाड़ दिए।
पंडित जी ने कहा - अच्छा। असल में कहीं भी ऐसे पेड़ रहते हैं तो घर पहचानने में बड़ी आसानी होती है।
                       उनकी बात सुनके लगा कि वाकई ये पेड़ हमारे लिए दशकों से एक लैंडमार्क का काम करते आए हैं। लेकिन बदलते समय के साथ हमारा जो एक रिश्ता पेड़-पौधों के साथ हुआ करता था, उसमें बड़ा बदलाव आया है। जीपीएस ने हमारी स्मरण शक्ति पर रोक लगा दी है। देखा जाए तो हमारी कितनी ढेरों स्मृतियाँ जुड़ी होती है इन पेड़ों से। अब इस एक नीम पेड़ की ही बात की जाए तो बचपन में हम इन पेड़ों से नीम के फल (जिनसे नीम का तेल बनता है) को तोड़कर इकट्ठा करते थे। कभी उन नीम के फलों को इकट्ठा कर कोई नया खेल इजात कर लेते तो कभी उन छोटे-छोटे फलों से एक-दूसरे को मारते। तो कभी पेड़ की छांव में बैठकर वहाँ धूल को साफ कर अपना घर बनाते। तो कभी पेड़ से झड़ते फूलों को इकट्ठा कर उस धूल की क्यारियों से बने घर को सजाते। और फिर पास में कच्चे रेत को एक ग्लास या कटोरे में भरकर नये-नये सांचे बनाते और फिर छोटी-छोटी टहनियों से अपने उस घर को सजाते। हर दिन एक नयापन होता था। सब बच्चे जड़ के आसपास अपना अलग-अलग तरीके से घर बनाते।
हां तो ये धूल और उससे जुड़े खेल खेलना ये सब एक उम्र तक चलता रहा। फिर हम थोड़े बड़े हुए।
                       अब हम थोड़े बड़े हुए तो हमने गुल्ली डंडा, नदी-पहाड़ आदि खेल खेलना शुरू कर दिया। फिर थोड़े बड़े हुए तो क्रिकेट, फुटबाल आदि आदि। लेकिन ये एक श्रृंखला चलती रही सब अपनी उम्र के मुताबिक खेल खेलते रहे।
और इस श्रृंखला का सबसे मजबूत पक्ष क्या था?
यह वो नीम का पेड़ ही था जिसकी छांव में हर उम्र का बच्चा आकर बैठता, खेलते हुए जब थक जाता तो खुद को हमेशा उस पेड़ के नीचे पाता। वो पेड़ हमसे जुड़ा हुआ था, और हम उस पेड़ से जुड़े हुए थे। उस छोटे से खाली मैदान सी जगह में उपस्थित वह पेड़ हमारे जीवन का हिस्सा था, लेकिन एक दिन कुछ कारण से वह पेड़ काट दिया गया। श्रृंखला टूट गयी, अब न उस पेड़ की शीतल छाया थी न ही उसके इर्द-गिर्द खेले जाने वाले खेल और न ही बच्चों की वो पहले जैसी धमाचौकड़ी। उस श्रृंखला में गजब का बिखराव आ चुका था।
                       आपके हमारे आसपास ऐसी न जाने सैकड़ों श्रृंखलाएं टूटती बिखरती रहती हैं, और हम देख भी नहीं पाते हैं। पेड़ CO2 लेकर हमें आक्सीजन देती है, हम आए दिन ऐसी रटी-रटाई चली आ रही बातें करते हुए उसकी महत्ता को सीमित करते रहते हैं। और जब पेड़ कटता है तो हमें लगता है कि बस एक पेड़ ही तो कटा है, लेकिन वो सिर्फ एक पेड़ कहां होता है वो तो हमारी स्मृतियों का एक जीवंत दस्तावेज होता है।
                       अभी कुछ दिन पहले एक अफसर से हमने सुना कि एक-दो पेड़ कट जाता है तो बेवजह कितना हल्ला होता है, दूसरे जगह वृक्षारोपण भी तो रहा है। मतलब बदमाशी की भी एक हद होती है, माने इतना छिछला,धूर्तता से भरा तर्क कोई कैसे दे सकता है, कुछ पेड़ टूटे, एक पूरी श्रृंखला में टूटन हुई , इसकी भरपाई के लिए जो नये पौधे रोपे गये, उन्हें पेड़ बनने में कितने साल लग जाएँगे। और ये जो इतना लंबी खाई बनी ये जो गेप बना, इसकी भरपाई कैसे होगी। इसके लिए क्यों नीतियों की निर्मम समीक्षा नहीं की जाती।
                       हमने देखा कि पेड़ों को बचाने की बात करने वालों को गँवार और पिछड़ा समझा जाता है। सही ही है, आज भी दूरस्थ गांवों में रहने वाला व्यक्ति छोटी टहनियाँ उठाने के लिए दस किलोमीटर तक की पदयात्रा कर लेता है, सचमुच एक गधा और देहाती व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। वो चाहता तो पास के पेड़ों से कुछ टहनियाँ तोड़ लेता, लेकिन दस किलोमीटर दूर जंगल में गिरी हुई टहनियों को उठाकर अपने उपयोग में लाना वो अपनी जिम्मेदारी समझाता है। वास्तव में देखा जाए तो वो पर्यावरण का सबसे बड़े रक्षक होता है। इनकी बुद्धि भी सीमित, तर्कशक्ति और समझ भी सीमित फिर भी इनका सामाजिक विज्ञान, इनका नागरिकशास्त्र हमसे हजार गुना अधिक विकसित। अब चूंकि पर्यावरण को बचाना इनकी जीवनशैली का हिस्सा है तो इन्हें जाहिल गँवार घोषित कर इन्हें हर समस्या के लिए दोषी बनाकर थोपे जाने वाले सारे तर्क एवं प्रतिक्रियाएँ स्वतः ध्वस्त हो जाती हैं।
                      देखा जाए तो आज के समय में जाहिल गँवार देहाती हो जाना या ऐसी उपमाओं से खुद को सुशोभित करना पीएचडीधारी डाक्टरेट की उपाधि ग्रहण करने से लाख गुना बेहतर है।
आखिरी बात ये कि हममें से हर किसी के जीवन में ऐसे नीम के पेड़ रूपी कुछ स्मृति चिन्ह होते हैं, उन्हें हमें हर हाल में बचाना चाहिए, बार-बार बचाना चाहिए।