चाहे कुंभ हो या हो केदारनाथ,
काशी हो या वृंदावन,
या हो मनाली या लद्दाख,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।
आस्था के पीछे तर्क देने वाले,
और आस्था का मजाक उड़ाने वाले,
दोनों कर रहें हैं धींघामुस्ती,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।
नुक्कड़ में चिल्लाने वाले,
टीवी में बकबक करने वाले,
सभी लड़ रहे अपने हिस्से का युद्ध,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।
उसने अपने भीतर नहीं झांका कभी,
ना कभी दूसरे के अच्छे पहलू को देखा,
मन मस्तिष्क में लड़ते रहने का छाया है फ़ितूर,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।
ख़ुद के पैरों में लगी है बेड़ियाँ,
लेकिन दूसरे की हथकड़ी का उड़ाता है मजाक,
शासित शोषित दोनों खड़े हैं कतार में,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।
दिन रात जुबानी तलवार चलाने वाले,
कर देते हैं एक बड़ी आबादी को ख़ामोश,
चुपचाप तमाशा देखिए,
हर जगह अतिरेक वालों का बोलबाला है।